

एक समय की बात है, राजा विक्रमादित्य अपने वचन के अनुसार बेताल को पकड़कर अपने कंधे पर लादकर शमशान की ओर ले जा रहे थे। रास्ते में बेताल ने एक नई कहानी सुनानी शुरू की।
कहानी शुरू होती है
कांचीपुर नामक नगर में एक राजा राज्य करता था। वह बहुत न्यायप्रिय और सत्यवादी था। उसकी प्रसिद्धि दूर-दूर तक फैली हुई थी। एक दिन राजा के दरबार में एक ब्राह्मण आया और उसने राजा को एक विशेष तलवार भेंट की। ब्राह्मण ने कहा, “हे राजन! यह कोई साधारण तलवार नहीं है। इस तलवार की शक्ति यह है कि जो भी इसका उपयोग करेगा, वह अजेय हो जाएगा। लेकिन इस तलवार का उपयोग केवल सच्चाई और न्याय के लिए किया जाना चाहिए।”
राजा ने ब्राह्मण को सम्मानपूर्वक विदा किया और तलवार को अपने शस्त्रागार में रख दिया। समय बीतता गया। एक दिन पड़ोसी राज्य के राजा ने कांचीपुर पर आक्रमण कर दिया। राजा ने अपनी सेना के साथ युद्ध किया, लेकिन शत्रु बहुत शक्तिशाली था।
सत्य की परीक्षा
तब राजा को ब्राह्मण द्वारा दी गई तलवार की याद आई। उसने तलवार निकाली और युद्ध के मैदान में उतर गया। तलवार के प्रभाव से राजा अजेय हो गया और शत्रु सेना भागने लगी।
परंतु तभी एक सैनिक ने राजा के पास आकर कहा, “महाराज! इस तलवार का उपयोग करने से पहले आपको यह विचार करना चाहिए कि क्या यह युद्ध वास्तव में न्याय के लिए लड़ा जा रहा है?”
राजा ठिठक गया। उसने सोचा कि क्या वास्तव में वह यह युद्ध अपने अहंकार के कारण तो नहीं लड़ रहा? क्या यह युद्ध किसी निर्दोष के लिए अन्यायकारी तो नहीं है?
राजा ने तुरंत तलवार को म्यान में डाल दिया और शत्रु राजा से संधि कर ली। उसने यह सिद्ध कर दिया कि न्याय और सत्य किसी भी अस्त्र-शस्त्र से अधिक शक्तिशाली होते हैं।
बेताल का प्रश्न
इतना कहकर बेताल रुक गया और राजा विक्रम से बोला, “हे राजन! बताओ, क्या राजा का यह निर्णय सही था? क्या उसे युद्ध करना चाहिए था या शांति का मार्ग अपनाना चाहिए था? यदि तुमने सही उत्तर दिया तो मैं उड़ जाऊँगा, और यदि नहीं बोले तो तुम्हारा सिर फट जाएगा।”
राजा विक्रमादित्य कुछ देर सोचकर बोले, “राजा का निर्णय सही था, क्योंकि एक सच्चे शासक का धर्म केवल युद्ध करना नहीं होता, बल्कि न्याय और सत्य की रक्षा करना होता है। अगर राजा ने अहंकार के वश में आकर युद्ध जारी रखा होता, तो यह अनुचित होता। इसलिए उसने शांति का मार्ग चुनकर सही किया।”
राजा के उत्तर देते ही बेताल हँसते हुए बोला, “राजन! तुमने सही उत्तर दिया, लेकिन साथ ही मेरी शर्त भी तोड़ दी। अब मैं फिर से वापस जा रहा हूँ!” और यह कहकर बेताल उड़कर पेड़ पर जा लटका।
राजा विक्रमादित्य ने एक बार फिर बेताल को पकड़ने के लिए कदम बढ़ाए।
शिक्षा:
इस कहानी से हमें यह सीख मिलती है कि सत्य और न्याय ही किसी भी राजा या व्यक्ति का सबसे बड़ा धर्म होता है। अहंकार में लिए गए निर्णय गलत साबित हो सकते हैं, लेकिन सच्चाई के मार्ग पर चलने से ही असली विजय प्राप्त होती है।