मृत्युंजय सोनी मनेन्द्रगढ़

मनेन्द्रगढ़ – मनुष्य को हमेशा समय के साथ और परिवर्तन के अनुरूप रहना चाहिए समय समय पर बदलाव के साथ नव युग के निर्माण के लिए विचार ,विमर्श ,स्मरण कर अपने अंदर की कला भाव जागृत करते रहना चाहिए इसी में जीवन की सार्थकता है युवाओ के साथ वृद्धजनों के लिए प्रेरणा स्रोत दिवंगत.जीवन कृष्ण चक्रवर्ती 84 वर्ष की आयु में निरन्तर उत्साह और आधुनिक विचारों से ओतप्रोत रहना इनमें देखा गया ,हमारे क्षेत्र की साहित्यकार अनामिका चक्रवर्ती के ससुर और दक्षिणेश्वर काली मंदिर, झगराखंड के पुजारी कोरिया साहित्य व कला मंच द्वारा आयोजित शोकसभा में संस्था के संस्थापक सदस्य मृत्युन्जय सोनी ने दिवंगत.जे के चक्रवर्ती को श्रृद्धांजलि देते हुए बताया कि वे हमेशा कहते थे कि इस अवसर पर चेतना महिला संगठन की अध्यक्ष और वरिष्ठ साहित्यकार अनामिका चक्रवर्ती ने अपने ससुर को याद करते हुए कहा कि वे पुरातन व आधुनिक विचारों के अद्भुत संगम रहे मेरे कार्य क्षेत्र में मुझे प्रोत्साहित करते हुए साहित्यिक गतिविधियों में बढ़ – चढ़कर भाग लेनै के लिए सहयोग करते रहे , पुरातन संयुक्त परिवार की व्यवस्था के पक्षधर थे उनका कहना था कि संयुक्त परिवार की व्यवस्था सबसे अच्छी व्यवस्था है इससे परिवार के कमजोर सदस्यों को भी संबल मिलता है कोल माइंस में प्रायवेट के समय से 1959 से नौकरी में कार्यरत एस. ई. सी. एल. कोल इंडिया ,जी एम ऑफिस में कार्यकाल को पूर्ण कर , 2001 में सेवा निवृत्त हुए। इन्होंने अपना जीवन प्रकृति के बीच फुल पौधों के साथ ईश्वर भक्ति में बिताया ,मन्दिर निर्माण कराया और इसके साथ वार्ड नं 7स्थित झगड़ाखांड दक्षिणेश्वर माँ काली बाड़ी में काली पूजा और दुर्गा पूजा के लिए समर्पित कर दिया।
साहित्य ,शास्त्र और वेद पुराण के ज्ञाता स्व. जे के चक्रवर्ती जी इतिहास और देश दुनिया के अच्छे जानकार थे।अपने भक्ति,, साहित्य के साथ अन्य क्षेत्र में जो सीखा और अपने जीवन के अनुभव दूसरों के साथ बांटना उनका वास्तविक परिचय रहा ।
प्राचीन कहानियां,लोककथा एवं आवृत्ति गान का भी उन्हें अच्छा शौक था। अपनी दिनचर्या में समय निकाल कर रामकृष्ण परमहंस, विवेकानंद, रविन्द्र नाथ टैगोर के जीवन वृत्तांत पर अपने अनुभवों को लोगों के साथ साझा करते रहे।अपना खाली समय का उपयोग पत्र पत्रिकाओं को मनोयोग से पढ़ने , चिन्तन करने में किया ।दैनिक समाचार पत्र भी उनकी दिनचर्या का एक महत्वपूर्ण हिस्सा था स्वभाव में मिलनसार, कर्मठ व्यक्तित्व के धनी जीवन कृष्ण चक्रवर्ती (जेके चक्रवर्ती) अपने पीछे धर्म पत्नी लक्ष्मी रानी चक्रवर्ती पुत्र जयंत चक्रवर्ती, सुशांत चक्रवर्ती, शशांक चक्रवर्ती , पुत्री -शिवानी पात्रा ,,पुत्र वधु – अल्पना चक्रवर्ती, मनुपा चक्रवर्ती, अनामिका चक्रवर्ती एवं आठ नाती – पोते पोतियों के साथ संपन्न संयुक्त परिवार और अपने एक मात्र भाई स्व. गोविन्द कृष्ण चक्रवर्ती के पुत्र पुत्र वधु संतोष चक्रवर्ती जया चक्रवर्ती एवं नाती अनिमेष चक्रवर्ती को छोड़ गये।
अपनी बहुओं के प्रति प्रोत्साहन , स्नेह, सम्मान व्यवहारिक रूप में रखते हुए उन्हें हमेशा जीवन में कुछ बेहतर करने और आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करते रहे।
उन्होंने अपनी संपूर्ण जीवन यात्रा को पूरी जीवटता के साथ जीते हुए तेजी से हो रहे एकल परिवार जैसी सामाजिक व्यवस्था के विपरित अपने परिवार के सदस्यों को एकजुटता और संयुक्त परिवार के दायित्वों का निर्वाह करते देखते हुए जीवन से विदा हुए।
शाकाहार भोजन लेते हुए हरी साग सब्जी खाने और नियमित भोजन में बंगाली पारम्परिक भोजन लेने के शौकीन थे।
भौतिक सुख सुविधाओं से परे सादा जीवन शैली में जीते हुए उन्होंने कभी कोई महत्वाकांक्षा नहीं रखी
श्रीमती चक्रवर्ती ने बताया कि आगामी 7 अक्टूबर को उनका दशगात्र एवं उनके नाम पर अंतिम भोज रखा गया है
कोरिया साहित्य व कला मंच के अध्यक्ष रितेश कुमार श्रीवास्तव,गौरव अग्रवाल, मृत्युन्जय सोनी, गंगा प्रसाद मिश्र, जगदीश पाठक,श्रवण कुमार उरमलिया आदि उनकी अंतिम यात्रा में शामिल हुए और चेतना महिला संगठन की सदस्य व कोरिया कला मंच के अन्य सदस्यों ने दिवंगत आत्मा को श्रद्धांजलि अर्पित की

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