कन्या भ्रूण हत्या हमारे देश हमारे राज्य हमारे क्षेत्र के लिए एक बहुत बड़ा अभिशाप है जिसे हम सबको मिलकर दूर करना है शिक्षा और जागरूकता जागरूकता की कमी से यह समस्या बढ़ रही है जिससे हमें दूर करना चाहिए

राकेश मेघानी की कलम से

हमारे देश की एक बड़ी विडंबना है कन्या भ्रूण हत्या ,, सरकार की लाख कोशिशों के बावजूद समाज में कन्या-भ्रूण हत्या की घटनाएं लगातार बढ़ती जा रही हैं। इससे बड़ा दुर्भाग्य यह भी है कि हमारे आपके जैसे पढ़े लिखे और सम्पन्न परिवार के लोगो का इसमें इसका बड़ा योगदान है। आने वाले समय में स्त्री-पुरुष लिंगानुपात में कमी हमारे समाज के लिए बड़ा खतरा बन सकती है इससे सामाजिक अपराध तो बढ़ेंगे ही, महिलाओं पर होने वाले अत्याचार में भी वृद्धि हो सकती है।

महिलाओं से जुड़ी समस्या पर काम करने वाली संस्था और सेंटर इस पर कार्य कर रही है लेकिन कहीं न कही जागरूकता की कमी है जो इस समस्या को बढ़ावा दे रही है। 0 से 6 साल के बच्चों का लिंग अनुपात सिर्फ कन्या भ्रूण हत्या के कारण ही प्रभावित नहीं हुआ, बल्कि इसकी वजह कन्या मृत्यु दर का अधिक होना भी है।

बच्चियों की देखभाल ठीक तरीके से न होने के कारण उनकी मृत्यु दर अधिक है। इसलिए जन्म के समय मृत्यु दर एक महत्वपूर्ण संकेतक है, जिस पर ध्यान देने की जरूरत है।

हमारे देश में बेटे के मोह के चलते हर साल लाखों बच्चियों की इस दुनिया में आने से पहले ही हत्या कर दी जाती है और यह सिलसिला लगातार जारी है।

समाज में लड़कियों की इतनी अवहेलना, इतना तिरस्कार चिंताजनक और अमानवीय है। जिस देश में स्त्री के त्याग और ममता की दुहाई दी जाती हो, उसी देश में कन्या के आगमन पर पूरे परिवार में मायूसी और शोक छा जाना बहुत बड़ी विडंबना है। हमारे समाज के लोगों में पुत्र की बढ़ती लालसा और बेटियों के के प्रति दूरी चिंता का विषय बन गया है।

महिलाएं विश्व की जनसंख्या से कम हो चुकी हैं, जो चिंता का विषय है। इसके पीछे कन्या भ्रूण हत्या ही मुख्य कारण है। छोटी मानसिकता और समाज में अंधविश्वास के कारण लोग बेटा और बेटी में फर्क करते हैं। समाज मे चल रहे रीति-रिवाज और सामाजिक व्यवस्था के कारण भी बेटा और बेटी के प्रति लोगों की सोच अलग अलग है। समाज में ज्यादातर मां-बाप सोचते हैं बेटा जीवन भर उनके साथ रहेगा और बुढ़ापे में उनकी लाठी बनेगा। समाज में वंश परंपरा को आगे बढ़ाने के बेटो को माना जाता है।

पुत्र कामना के चलते ही लोग अपने घर में बेटी के जन्म की कामना नहीं करते। बड़े शहरों के कुछ पढ़े-लिखे परिवारों में यह सोच थोड़ी बदली है, लेकिन गांव, देहात और छोटे शहरों में आज भी बेटियों को लेकर पुरानी सोच बरकरार है।

आज भी शहरों के मुकाबले गांव में दकियानूसी विचारधारा वाले लोग बेटों को ही सबसे ज्यादा प्यार दुलार और सुविधा देते हैं, लेकिन मां का भी यह कर्तव्य है कि वह समाज के दबाव में आकर लड़की और लड़का में फर्क न करे। दोनों को समान स्नेह और प्यार दे। दोनों के विकास में बराबर दिलचस्पी ले। बेटा बेटी दोनों प्यार के बराबर अधिकारी हैं। इनके साथ किसी भी तरह का भेद करना कुदरत के खिलाफ होगा।

इतना जरूर है कि यदि कोई लड़की अपनी मेहनत और प्रतिभा से कोई मुकाम हासिल कर लेती है तो हमारा समाज उसे स्वीकार कर लेता है। हमने प्रशासन के लिए तो लोकतांत्रिक संस्थाएं अपना ली हैं, लेकिन उसका समाज तक विस्तार होना बाकी है। यही कारण है कि तमाम सरकारी कोशिशों के बावजूद कन्या- भ्रूण हत्या पर रोक नहीं लग पा रही है।।

हमारे समाज में लोग बहु तो अच्छी चाहते हैं लेकिन बेटी पैदा नहीं करना चाहते लेकिन वह भूल जाते हैं कि जो हमारे बेटे की बहू आएगी वह भी किसी ना किसी की बेटी है अगर हर आदमी बेटी को जन्म देना बंद कर दे तो बहू कहां से आएगी इसके साथ हर आदमी को पैदा करने वाली एक मां है जो किसी की बेटी थी अगर वह इस दुनिया में नहीं आती तो आदमी स्वयं कहां से आता

Spread the love